चना भारत की दलहनी फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आज हम आपको बतायेगें की अधिक उत्पादन करने के लिये चने की खेती कैसे की जाती है , चने की खेती में उपयुक्त जलवायु कोनसी है, चने में कीटों एवं रोगों का प्रबंध, चने में खरपतवार का प्रबंध, चने की अधिक उपज देने वाली प्रजातिया इन सब माध्यम से हम आपको बतायगे की चने की खेती कैसे की जाती है ।
मैदानी इलाकों में चने की बुवाई अक्टूबर माह के दूसरे तथा तीसरे सप्ताह में करने पर अधिक पैदावार प्राप्त होती है लेकिन तराई के इलाकों में जहां भूमि में काफी नमी पाई जाती है इसकी बुवाई नवंबर के पहले तथा दूसरे सप्ताह में करनी चाहिए।
चने की खेती हल्की एलुबियाल भूमियों जहां की गेहूं को नहीं उगाया जा सकता है मैं, सफलतापूर्वक की जा सकती है परंतु काबुली चने के लिए ज्यादा उपजाऊ जमीन की आवश्यकता होती है। चने की खेती दोमट भूमि से मटियार भूमियों तक सफलतापूर्वक की जा सकती है हल्की कछारी भूमियों में भी चना उगाया जा सकता जा सकता है चने की फसल के लिए भूमि में जल निकास की अच्छी सुविधा होना अत्यंत आवश्यक है चने के लिए मध्यम उपजाऊ भूमियों की आवश्यकता होती है अधिक उपजाऊ भूमियों में पौधों में वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती है फूल और फल कम लगते हैं।
देशी चने की खेती के लिए खेत की कोई विशेष तैयारी करने की आवश्यकता नहीं होती। काबुली चने के लिए खरीफ की फसल कटने के बाद पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से व 2 जुताई देसी हल से करना चाहिए।
अमर पूसा 203, पूसा 209, गौरव पूसा 261, kwr 108, ig 315
अमर गौरव, सी 235 ,g 130, पूजा 209, एच 208
अमर, पूसा 209 ,गिरनार, rs11, पूसा 212, rs10
जे जी 62, जे जी 74, टॉ 3 ,आधार ताल 5, पूसा 482, अमर पूसा 209 ,ग्वालियर 2 , उज्जैन 24
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वुबाई के 30 से 35 दिन बाद पहली निराई - गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण के उद्देश्य हेतु बहुत ही आवश्यक है। खरपतवार का नियंत्रण रासायनिक विधि से भी किया जा सकता है।
उकठा रोग या उखेड़ा Wilt - यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरम नामक फफूंद से लगता है इसके प्रभाव से पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं तने के लंबवत चिरान में तंबाकू के रंग की धारा दिखाई पड़ती हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है। पानी करने पर भी पौधे सूखते हैं।
(2) अंगमारी या झुलसा (Blight-Ascochyta rabici) - यह रोग भी फफूंद से लगता है
सुबह-सुबह खेत में देखने पर कहीं-कहीं टुकड़ों में पौधे पीले पड़ते नजर आते हैं। यह बीमारी बीज से
फैलती है। पौधे के तने, पत्तियों और फलियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में पीले रंग के
हो जाते हैं। पौधे धीरे-धीरे कमजोर होकर मर जाते हैं।
रोग से फसल को बचाने के लिए
रोकथाम के उपाय-
(i) कार्बारिल 10 प्र० श० धूल 20-25 किग्रा०/हे.
(ii) मैलाथियान 5 प्र० श० धूल 20-25 किग्रा०/हे.
शीर्ष व शाखाएँ तोड़ना (Nipping)- चना की फसल में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए 15-20 सेमी० ऊँचाई होते ही शीर्ष तोड़ देते हैं। जिससे वानस्पतिक वृद्धि रुकती है। चने की फसल में चूँकि फूल व फल पत्तियों की कक्षों में आते हैं अत की निपिंग (शीर्ष कर्तन) करने से पौधों में शाखाओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण ज्यादा संख्या में फूल व फल वनते है।
आप सब समझ ही गए होंगे की चना की खेती अधिक उत्पादन के लिए किसी कि जाती है। . यदि आपके मन में इस article को लेकर कोई भी doubts हैं या आप चाहते हैं की इसमें कुछ सुधार होनी चाहिए तब इसके लिए आप नीचे कॉमेंट लिख कर बता सकते है। आपके इन्ही विचारों से हमें कुछ सीखने और कुछ सुधारने का मोका मिलेगा.
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chana ki fasal |
चना बुवाई का समय -
चना की चने की खेती साधारणतया शुष्क फसल के रूप में रवि की ऋतु में की जाती है। जिन स्थानों पर सिंचाई की कोई सुविधा नहीं होती उन स्थानों पर बिना सिंचाई की सुविधाओं के ही अर्थात जाड़े की वर्षा के आधार पर ही चना उगाया जा सकता है परंतु कुछ स्थानों पर चने की फसल सिंचित फसल के रूप की जा सकती है चने के अंकुरण के लिए उच्च तापक्रम की आवश्यकता होती है परंतु पौधों की वृद्धि के लिए ठंडक वाला मौसम बहुत ही उपयुक्त होता है फसल पकने के लिए फिर उचित तापक्रम तापक्रम की आवश्यकता होती है.
चना की खेती के लिए उपयुक्त भूमि soil -
चने की खेती हल्की एलुबियाल भूमियों जहां की गेहूं को नहीं उगाया जा सकता है मैं, सफलतापूर्वक की जा सकती है परंतु काबुली चने के लिए ज्यादा उपजाऊ जमीन की आवश्यकता होती है। चने की खेती दोमट भूमि से मटियार भूमियों तक सफलतापूर्वक की जा सकती है हल्की कछारी भूमियों में भी चना उगाया जा सकता जा सकता है चने की फसल के लिए भूमि में जल निकास की अच्छी सुविधा होना अत्यंत आवश्यक है चने के लिए मध्यम उपजाऊ भूमियों की आवश्यकता होती है अधिक उपजाऊ भूमियों में पौधों में वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती है फूल और फल कम लगते हैं।
खेत की तैयारी
देशी चने की खेती के लिए खेत की कोई विशेष तैयारी करने की आवश्यकता नहीं होती। काबुली चने के लिए खरीफ की फसल कटने के बाद पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से व 2 जुताई देसी हल से करना चाहिए।
चना की उन्नत जातियां Variety -
उत्तर प्रदेश के लिए चने की जातियां
अमर पूसा 203, पूसा 209, गौरव पूसा 261, kwr 108, ig 315
हरियाणा के लिए चने की उन्नत जातियां
अमर गौरव, सी 235 ,g 130, पूजा 209, एच 208
राजस्थान के लिए चने की उन्नत जातियां
अमर, पूसा 209 ,गिरनार, rs11, पूसा 212, rs10
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए चने की उन्नत प्रजातियां
जे जी 62, जे जी 74, टॉ 3 ,आधार ताल 5, पूसा 482, अमर पूसा 209 ,ग्वालियर 2 , उज्जैन 24
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चना वुबाई के लिए बीज की मात्रा -
बीज दर बीज के आकार के अनुसार प्रयोग करनी चाहिए छोटे दाने वाले 65 किलोग्राम, मध्यम आकार के दानों वाली किस्मों के लिए 70 किलोग्राम, व बड़े दाने वाले काबुली जातियों किस्मों के 100 से 125 किलोग्राम, बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। बीज की गहराई 6 से 8 सेंटीमीटर तक होना चाहिए।चना का बीज उपचार
यह अत्यंत आवश्यक प्रक्रिया है जिसके करने से चने की फसल में अनेक प्रकार के रोग एवं कीट के प्रकोप को रोका जा सकता है। यह प्रमुख फंगस वाले रोग को कंट्रोल करते हैं बीज उपचार करने के लिए कार्बेंडाजिम + मैनकोज़ेब नामक फंगीसाइड का प्रयोग करना चाहिए इसका प्रयोग 2 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से करना चाहिए।खाद एवं उर्वरक का प्रयोग
दलहन फसल होने के कारण चने में नाइट्रोजन की अधिक आवश्यकता नहीं होती। प्रारंभ में 15 से 20 किलोग्राम नाइट्रोजन 50 से 40 किलोग्राम फास्फोरस सिंचित क्षेत्रों में व 20 किलोग्राम फास्फोरस असिंचित क्षेत्रों में 20 - 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए।चना में सिंचाई कब करें ?
सिंचित क्षेत्रों में पहली सिंचाई शाखा निकलने निकलने पर वुबाई के 25 से 30 दिन बाद दूसरी सिंचाई बोने के के 55 से 60 दिन बाद फूल आते समय करणी लाभदायक है तीसरी सिंचाई फली फली बनते समय होने से पचासी से 90 90 दिन बाद करनी चाहिए करनी चाहिए शीतकालीन वर्षा अगर इस समय हो जाए तो सचिवों की आवश्यकता नहीं होती अगर एक ही सच्चाई उपलब्ध है तो गवाही के 50 दिन बाद फूल निकलते समय करना चाहिए खेत में जल निकास का उचित प्रबंधन होना आवश्यक हैचने की फसल में खरपतवार नियंत्रण
वुबाई के 30 से 35 दिन बाद पहली निराई - गुड़ाई खरपतवार नियंत्रण के उद्देश्य हेतु बहुत ही आवश्यक है। खरपतवार का नियंत्रण रासायनिक विधि से भी किया जा सकता है।
चने की मिश्रित खेती
चने को गेहूं जो के साथ 11 अनुपात में सरसों के साथ 41 सरसों के साथ 41 में सरसों के साथ 41 सरसों के साथ 41 अनुपात में सरसों के साथ 41 सरसों के साथ 41 के साथ 41 के अनुपात में मिलाकर होना चाहिए अक्टूबर में बोले गए चाहिए अक्टूबर में बोले गए गन्ना की कतारों के बीच चने की एक कतारों गाना काफी लाभप्रद है
चना के रोग एवं उनकी रोकथाम
उकठा रोग या उखेड़ा Wilt - यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरम नामक फफूंद से लगता है इसके प्रभाव से पौधे की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं तने के लंबवत चिरान में तंबाकू के रंग की धारा दिखाई पड़ती हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है। पानी करने पर भी पौधे सूखते हैं।
रोग का प्रबंधन
- इस रोग से बचने के लिए रोगरोधी किस्मों जैसे पंत जी 114, सी 235,पूसा 209, हरियाणा चना 1 , c 214, g 24 आदि का उपयोग करना चाहिए।
- अगर पिछले वर्ष आपके खेत में उकठा रोग लगा था तो चने की बुवाई 25 अक्टूबर से पहले ना करें।
- बीज को बौने से पहले बीज उपचार कर लेना चाहिए।
- खेत की जुताई गहरी करें।
(2) अंगमारी या झुलसा (Blight-Ascochyta rabici) - यह रोग भी फफूंद से लगता है
सुबह-सुबह खेत में देखने पर कहीं-कहीं टुकड़ों में पौधे पीले पड़ते नजर आते हैं। यह बीमारी बीज से
फैलती है। पौधे के तने, पत्तियों और फलियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में पीले रंग के
हो जाते हैं। पौधे धीरे-धीरे कमजोर होकर मर जाते हैं।
रोग से फसल को बचाने के लिए
- रोगरोधी किस्म; जैसे-सी० 235, जी० 543, PG. 114, अवरोधी, K. 850; PBG-1 BG 267,L-550 आदि बोएँ।
- स्वस्थ प्रमाणित बीज का प्रयोग करें व 2 ग्रा० वैवस्टीन से 1 किग्रा० बीज उपचारित करके बोएँ।
- फसल कटाई के बाद; खेत से फसल अवशेष नष्ट करें।
- बुआई से पहले भूमि को 10 किग्रा० ब्रैसीकाल या कैप्टान से उपचारित करें।
- उचित फसल-चक्र अपनाएँ।
- प्रभावित पौधों को नष्ट करें।
चने के कीट एवं उनकी रोकथाम
- कुतरा (Cutworm or Agrotis sps.) यह चने का बड़ा भयंकर कीट है। यह रबी की सभी दाल वाली फसलों को हानि पहुंचाता है। यह पौधे के तने को भूमि के पास से खाता है और पौधे परचढ़कर पत्तियों को भी हानि पहुंचाता है। इनकी रोकथाम के लिए बुआई से पूर्व खेत में 1.3% चूर्ण की 30 किग्रा० अथवा सेवीडाल दानेदार 25 किग्रा०/हे० की दर से मिट्टी में मिलाएँ।
- चने की फली बेधक (Gram pod borer or Heliothis armigera) - इसकी गिंडार या सूंडी या कमला या इल्ली (caterpillar) चने की फलियों में छेद करके दाने को खा जाती है।
रोकथाम के उपाय-
- फसल के पास प्रकाश प्रपंच की मदद से प्रौढ़ कीटों को एकत्र करके नष्ट कर देना चाहिए।
- अधिक प्रकोप होने पर कीटनाशी रसायन; जैसे-इण्डोसल्फान 35 ई०सी० 1.25 ली० याक्वोनालफॉस 25 ई० सी० 1.25 ली० या मोनोक्राटोफॉस 36 ई० सी० 800 से 1000 मि० ली० का छिड़काव करें।
- इल्ली से सबसे अच्छा लम्बे समय तक नियंत्रण पाने के लिए FMC कंपनी की कीटनाशक Coragen का उपयोग करना चाहिए इसका 40 ml प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
- यदि किसी कारण से छिड़काव करना सम्भव न हो तो निम्नलिखत कीटनाशक रसायनों में से किसी एक को संस्तुत मात्रा में लेकर समान रूप से उपयोग (बुरकाव) करके रोकथाम की जा सकती है
(i) कार्बारिल 10 प्र० श० धूल 20-25 किग्रा०/हे.
(ii) मैलाथियान 5 प्र० श० धूल 20-25 किग्रा०/हे.
चने की फसल में अधिक उत्पादन कैसे प्राप्त करें
शीर्ष व शाखाएँ तोड़ना (Nipping)- चना की फसल में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए 15-20 सेमी० ऊँचाई होते ही शीर्ष तोड़ देते हैं। जिससे वानस्पतिक वृद्धि रुकती है। चने की फसल में चूँकि फूल व फल पत्तियों की कक्षों में आते हैं अत की निपिंग (शीर्ष कर्तन) करने से पौधों में शाखाओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण ज्यादा संख्या में फूल व फल वनते है।
आप सब समझ ही गए होंगे की चना की खेती अधिक उत्पादन के लिए किसी कि जाती है। . यदि आपके मन में इस article को लेकर कोई भी doubts हैं या आप चाहते हैं की इसमें कुछ सुधार होनी चाहिए तब इसके लिए आप नीचे कॉमेंट लिख कर बता सकते है। आपके इन्ही विचारों से हमें कुछ सीखने और कुछ सुधारने का मोका मिलेगा.
यदि आपको मेरी यह लेख चना की खेती अच्छा लगा हो या इससे आपको कुछ सिखने को मिला हो तब अपनी प्रसन्नता और उत्त्सुकता को दर्शाने के लिए कृपया इस पोस्ट को Social Networks जैसे कि facebook whatsapp की बटन दवा कर शेयर कीजिये।
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